'गढ़ों में गढ़, चित्तौड़गढ़' इस प्रचलित कहावत का सच आप किले के परिसर में दाखिल होकर ही जान सकेंगे। रानी पद्मावती के अलावा यह गवाह है यहाँ के विख्यात राणाओं की वीरगाथाओं का भी। प्रेम व् भक्ति में डूबी मीराबाई की कहानियां भी बसती है यहाँ। तो आइये चलते है गौरवशाली गाथाओं का गढ़, 'चित्तौड़गढ़, के खास सफर पर...
Chittod gadh fort
एक छोटा सा शहर है चित्तौड़गढ़।इसकी जनसंख्या तक़रीबन दो लाख के आसपास है। पर अनंत है इसकी प्रसिद्धि का विस्तार। सबसे खास वजह है यहाँ मौजूद वह विशाल गढ़, जिसे सामरिक दृस्टि से काफी सोच-समझ कर बनवाया गया। वीर और साहसी राणाओं ने न सिर्फ इस शहर पर राज किया, बल्कि इसे दूरदर्शिता के साथ सजाया-सवांरा भी। मेवाड़ की इस भूमि ने कई प्रतापी राजाओं का काल देखा,जिसमे प्रमुख है राणा कुंभा,राणा सांगा,और महाराणा प्रताप। वीर राजपुतो की इस धरती पर शूरवीरों की कोई कमी नहीं थी, पर संकट हजार थे। चित्तौड़गढ़ ने तीन बड़े हमले देखे। चित्तौड़गढ़ राजपूत वीरों का काल तो देखा ही, वीरांगनाओं का जौहर भी देखा। चित्तोड़ की हर गली, हर कूंचा, पूरा परिवेश आज भी वीरों की इन गाथाओं को बयां करता नजर आता है। यहाँ के किले को यूनेस्को ने 'विश्व् धारोहर' के तमगे से नवाजा है।
🔺 किले को एक एतिहासिक टाउनशिप मान सकते हैं, जिसकी ऊंची-ऊंची दीवारों के भीतर ही आबादी की जरूरतों से जुडी संरचनाए बनी हुई है। यहाँ हिंदू मंदिर के अलावा जैन मंदिर और बौद्ध स्तूप भी स्थित है। 🔻
आदर्श स्मारकों में शामिल-
मछलीनुमा चित्तौड़गढ़-
चित्तोड़ गढ़ किला
यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग इतना विशाल है कि आप एक दिन में इसे अच्छी तरह से नहीं देख सकेंगे। पूरा दिन लग जायगा, फिर भी बहुत सारी चीजे नहीं देख सकेंगे। अगर आप ट्रैवलर है तो कम से कम 2 से 3 दिन तो होने ही चाहिए। बहरहाल, 700 एकड़ में फैला यह दुर्ग बहुत विशाल है, जिसकी परिधि लगभग 13 किलोमीटर की है। वाकिंग शूज पहन कर जब पतले सर्पीले रास्तों पर चलेंगे तो यह एहसास नहीं होगा कि आप कितनी चढ़ाई चढ़ चुके हैं। जल्द ही किले ऊपरी भाग पर खुद को पाएंगे। किले की अधिकतम लंबाई 5 किलोमीटर है। मछली के आकार वाले इस दुर्ग में पहुंचने के लिए सात दरवाजे पर करने होते है। इन दरवाजों को यहाँ पोल कहा जाता है, जैसे- भैरवपोल,पांडव पोल, गणेश पोल, हनुमान पोल, लक्षमण पोल, राम पोल, जोड़ला पोल् आदि।
झलकती है कुंभा की शख्सियत
Rana Kunbha mahal राणा कुंभा महल, किले में स्थित सबसे प्राचीन संरचना है। महाराणा कुंभा की गणना मेवाड़ के प्रतापी राजाओं में से अग्रिम पंक्ति में होती है। एक शूरवीर होने साथ ही वे बहुत बड़े शिव भक्त भी थे। वीर होने के साथ-साथ कला के प्रति उनका प्रेम उन्हें एक बेमिसाल शासक के रूप में स्थापित करता है। महाराणा कुम्भा के शासन में मेवाड़ का न सिर्फ विस्तार हुआ, बल्कि इस दौरान कुछ अदभुत संरचनाए भी अस्तित्व में आई। उन्होंने ही कुंभल गढ़ का किला बनवाया था। किलो के निर्माण के आलावा महाराणा कुंभा ने मंदिरो का भी निर्माण करवाया। उनके शासन में कला, स्थापत्य, संगीत खूब फले-फुले। राणा कुंभा के निवास स्थल रहे महल की भव्यता राणा के शौर्यपूर्ण और शानदार व्यक्तित्व का भी जीता-जगता प्रमाण है। आप यहाँ आएं तो एक बार महल का दर्शन भी जरूर करें।
विजय स्तंभ : जीत का जीवंत प्रतीक
चित्तौडग़ढ़ दुर्ग की पहचान के रूप में मशहूर विजय स्तंभ आज भी गवाह है उन वीर योद्धाओं के पराक्रम का,जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर मेवाड़ का सर कभी झुकने नहीं दिया। इसका निर्माण राणा कुंभा ने करवाया था। जब उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी को हराया तो इस जीत को यादगार बनाने के लिए नौ खंडो में बने इस विशाल स्तंभ का निर्माण कराया। महाराणा कुंभा ने विजय स्तंभ को अपने आराध्य देव भगवन विष्णु की समर्पित किया। इस स्तंभ की दीवारों पर उकेरी हुई मूर्तियां बेहद खूबसूरत है। इसकी ऊंचाई लगभग 122 फीट है और यह एक विशाल चबूतरे पर बनाया गया है। विजय स्तंभ सुनहरे पत्थर की उत्कृष्त कृति है। इसमें कहि भी ईंट या चूने का प्रयोग नहीं हुआ है। सात मंजिल तक की संरचना एक जैसी है, आठवीं मंजिल अलग है, जिसकी सूंदर बारह छतरियों का विस्तार इसे भव्यता प्रदान करता है। इसे बनाने में बीस साल का समय लगा था
Vijay stanbh
बस्सी विलेज में बनते देखें लकड़ी के खिलौने
चित्तौड़गढ़ से करीब 25 किलोमीटर दूर है बस्सी विलेज। इस गावं की संस्कृति लकड़ी के खिलौनो के जरिये पूरी दुनिया में पहुँचती है। गावं के लोग अपनी प्राचीन धरोहरों को जिन्दा रखे हुए है। वे लकड़ी के पोर्टेबल कपाटों में चित्रों के माध्यम से पौरोणिक कथाओं को सजोने का काम करते है। इनके पोर्टेबल मंदिर बेहतरीन आर्ट वर्क मने जाते है। राजस्थान की लोक कथाओं के पात्र जिन्हे कठपुतली के रूप में जानते है, यहीं आकर लेते है। गावं के लोग पूरी तन्मयता से लकड़ीयों को खिलोने की शक्ल कैसे देते है, यह पूरी प्रक्रिया यहाँ आकर नजदीक से देख सकते है। यही बस्सी वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी भी मौजूद है।
Wood toy
विंध्याचल पर्वतश्रेणी के 15,290 हेक्टेअर क्षेत्र में फैले इस अभ्यारण में कई दुर्लभ वन्यजीव हैं। बस्सी में कई पुरातात्विक महत्व के स्थल है। यहाँ बस्सी फोर्ट भी है जिसे अब होटल में तब्दील कर दिया गया है। गावं के नजदीक पानी के दो बड़े जलाशय है,जहां आप बोटिंग का आनंद ले सकते है। इस गावं में इतना कुछ देखने के लिए है कि पूरा दिन कैसे गुजर जायगा, यह पता नहीं चलेगा।
मेनाल जल प्रपात की छटा
अगर आप सोचते है कि राजस्थान में प्राकृतिक खूबसूरती कम है, तो यहाँ आकर आपकी सोच बदल जायगी। चित्तोड़गढ़ के नजदीक मेनाल गावं में एक विशाल जल प्रपात है, जो पुरे वेग से 50 फीट की ऊंचाई से गिरता है। मेनाल चित्तौड़गढ़ जिले के बेंगु क्षेत्र में स्थित है। यह प्रकिर्तिक स्थल मुख्यालय से 86 किलोमीटर की दुरी पर बूंदी-कोटा मार्ग नंबर 27 पर स्थित है। यह स्थल बारिश शुरू होते ही अनुपम छठा बिखेरता है। यह वही जल प्रपात है, जिसकी प्रशंसा माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी भी अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात में कर चुके है।
Menal water fall
सफ़ेद दूध-सी निर्मल जल धारा और जंगल का नैसर्गिक सौंदर्य इतना लुभावना है कि आप एक बार फिर यहाँ जरूर आना चाहेंगे। मेनाल एक ऐसा रमणीक स्थल है, जो प्रकृति के साथ पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्त्व भी रखता है। यहाँ कई प्राचीन मंदिर है, जैसे- मेहनालेश्वर मंदिर, जिसका निर्माण 12वी शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था।
मीरा बाई का मंदिर
चित्तौड़गढ़ की धरती इतिहास की कुछ न भुलाई जा सकने वाली वीरांगनाओं के त्याग की गवाह भी है। अगर चित्तौड़गढ़ का पर्याय रानी पद्मावती को माना जाता है तो गिरधर गोपाल की दीवानी मीरा बाई जैसी शख्सियत का ताल्लुक भी इसी जगह से है। यहाँ मीरा बाई को समर्पित संरचना भी है, जिसका नाम मीराबाई मंदिर है। जिसका निर्माण भी महाराणा कुंभा ने ही करवाया था। मंदिर की वास्तुकला मीराबाई के जीवन से प्रेरित मालूम देती है। इस मंदिर की मुख्य संरचना एक ऊँचे चबूतरे पर बनी है, जो कि राजपूती स्थापत्य कला की खासियत है। मुख्य गर्भगृह के ऊपर मंदिर की विशाल छत है। मंदिर के गर्भगृह में मीरा के प्रभु गिरिधर नागर स्थापित है। अंदर भगवन की प्रार्थना में लीन मीरा बाई के चित्र है। मंदिर के भीतर एक छोटी छतरी मीराबाई के संरक्षक व गुरु स्वामी रविदास की समर्पित है। मंदिर के नीचे फर्श पर संत रविदास पद्चिन्ह भी है।
Mirabai temple
फ़तेह प्रकाश पैलेस म्युजियम
दुर्ग में बनी हवेलियां, महल, कुंड और विशाल मंदिरों के वैभव की झलक खंडहर में तब्दील ही चुकी विशाल संरचनाओं से मिलती है। इनको लेकर फ़तेह प्रकाश पैलेस में लोगों की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिये उस दौर की नायब धरोहरों का एक अमूल्य संग्रह सुरक्षित रखा गया है। इस संग्रहालय में पुरातात्विक महत्त्व के कुछ दुर्लभ नमूने संरक्षित है। इनमें गुप्त और मौर्यकाल से लेकर जैन और हिन्दू संस्कृति से जुड़े शिलालेख और मुर्तिया तक शामिल है। इस संग्रहालय का रखरखाव पुरातत्व विभाग करता है। यह संग्रहालय शुक्रवार को बंद रहता है।
Fatah prakash palace museum
कीर्ति स्तंभ
दुर्ग के भीतर विजय स्तंभ जैसी एक और दर्शनीय टॉवरनुमा संरचना देखने को मिलती है। यह कीर्ति स्तंभ है। कहते हैं इस स्तंभ का निर्माण 12 वीं शताब्दी में एक जैन व्यापारी जीजा भांगरेवाला ने करवाया था। इस स्तंभ की ऊंचाई 22 फीट है। यह संरचना चालुक्य स्थापत्य कला के आधार पर बनी प्रतीत होती है।
उड़ने वाली गिलहरियां दिखेंगी यहाँ
Flying squirrel |
सीतामाता वाइल्ड लाइफ |
तीन अलग-अलग पर्वत श्रंखलाओं,जैसे-मालवा का पठार, विंध्यांचल पर्वतमाला और अरावली पर्वत श्रंखला के संगम स्थल पर बने होने के कारण यह वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी अनोखी जैवविविधता लिए हुए है। इसके पास छोटे-छोटे गावं भी मौजूद है।
इन्हे भी जाने...
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग को यूनेस्को ने वर्ष 2012 में विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया था।
- किला परिसर में स्थित जैन मंदिर में भगवान ऋषभ की काले पत्थर की मूर्ति को यहाँ की भील जनजाति के लोग बड़ी आस्था से पूजते है।
- चित्तौड़गढ़ किले में रानी पदिमनी नाम से भी एक महल है, जो गढ़ में दक्षिण दिशा में निर्मित कमल सरोवर के पीछे स्थित है। पदमावत फिल्म को लेकर विवाद सामने आने के बाद यहाँ पर्यटकों की संख्या अचानक बढ़ गई है।
- गौमुख जलाशय चित्तौड़गढ़ का प्रमुख आकर्षण है। हरे पानी वाला यह जलाशय आस्था का केंद्र भी है।
स्वादिष्ट पकवान :प्याज की कचौरी और घेवर का स्वाद
rajasthani thali |
चित्तौड़गढ़ का खाना अपने में समेटे हुए है मेवाड़ की खुशबु। यहाँ के लोगों के जीवन में मीठे का बहुत महत्त्व है। आप जब चित्तौड़गढ़ आएं तो घेवर जरूर चखें।यहाँ का मालपुआ देश भर में मशहूर है। यहाँ दाल-बाटी के साथ देशी घी में बना चूरमा भी आपका दिल खुश कर देगा।
ghewar चित्तौड़गढ़ में दाल और प्याज की कचोरी जरूर खाएं। यहाँ एक रेस्टोरेंट है गणगौर, जिसकी राजस्थानी थाली बहुत स्वादिष्ट मानी जाती है। राजपूती स्वाद आज भी यहाँ कायम है। राजपूत धर्मेंद्र सिंह और उनकी पत्नी नीलम इसे चलते हैं। इनकी कोशिश है कि यहाँ चित्तौड़गढ़ में आने वाले हर पर्यटक को अपने राजपूत अंचल का स्वाद चखा सकें.
pyaj or dal ki kachori
यहाँ आप राजस्थान की मशहूर गट्टे की सब्जी और बाजरे की रोटी भी खा सकते है। यहाँ सुबह के समय दूध-जलेबी खाने का चलन है। इन गलियों में घूमते हुए किसी हलवाई की दुकान में गरमा-गरम दूध-जलेबी का नाश्ता क्र आप पुरे दिन के लिए ऊर्जा पा सकते है।
खरीदारी खास है यहाँ
rana sanga market |
चित्तौड़गढ़ केवल किलों महलो के लिए ही नहीं खरीदारी के लिए भी जाना जाता है। ख़रीदारी का यहाँ अपना एक अलग आनंद है। यहाँ मुख्य रूप से तीन बाजार है-सदर बाजार, राणा सांगा बाजार और फोर्ट रोड बाजार।
अपने घर को सजाने के लिए आप इन जगहों से कई आईटम खरीद सकते है, जैसे-एंटीक डेकोरेशन आईटम, ऊंट की खाल से बने लेदर बैग, लकड़ी के झरोखे और रंगो से सजी राजस्थानी चुनरियाँ। सदर बाजार से आप यहाँ की लोकल ज्वेलरी भी खरीद सकते है। यहाँ प्राकृतिक रंगों से रंगे हुए फैब्रिक भी उचित दामों पर मिल जाते है।
सैर कैसे और कब करे ?
उदयपुर सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यहाँ से आगे टैक्सी से चित्तौड़गढ़ करीब दो घंटे के सड़क मार्ग पर है।यहाँ गर्मियों में तपिश सहन से परे होती है, इसलिए सर्दियों में जाना ही बेहतर है।
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